चार रात की नशे की जिन्दगी
फिर अन्धकार ही अन्धकार है।
भंग की तरंग नहीं है जिन्दगी,
गांजा,चरस,धूम्रपान नहीं जिन्दगी,
शराब तो खराब और भी,
नष्ट कर देती समग्र जिन्दगी,
निराशा हताशा का
नशाखोरी नहीं उपचार है॥1॥
तुम सिंहनी के जाये हो,
पुत्र जवां मर्द बाप के,
जाना कहां था तुम्हे और
ये तुम किधर चल पडे।
अपनी जिन्दगी यह है ना पलायन,
जिन्दगी तो कर्म का द्वार है॥2॥
जिन्दगी कायरों की होती नहीं,
यह जिन्दगी तो कभी रोती नहीं,
जिन्दगी तो कभी हारती नहीं,
भयभीत जिन्दगी कभी होती नहीं।
मुश्किलों को रौंदती,बाधाएं चीरती,
यह जिन्दगी विजय का द्वार है॥3॥
क्षणिक सुख की कामना तो
अपनी नहीं है जिन्दगी,
जिन्दगी मातृऋ ण को उतारती,
जिन्दगी मातृभूमि ऋ ण उतारती,
यह जिन्दगी अकेले तुम्हारी नहीं है,
इस पर न जाने किस किस का अधिकार है॥4॥
कलाई पर बन्धे रेशमी धागे की जिन्दगी,
आंचल में छुपा दूध वात्सल्य जिन्दगी,
गोद में पिता की बैठा दुलार जिन्दगी,
नयनों में छलकता प्यार जिन्दगी,
दादी की कहानियों को याद करो,
लाडभरी थपकियां जो सुनाई देती बारबार है॥5॥
तुम्हे मालूम नहीं तुम्हे क्या हो गया,
तुम्हारा स्वाभिमान रे कहां खो गया,
निजत्व,पुरुषत्व इमान ज्ञान ध्यान का,
वचन का जान पहिचान का,
यह नशीली रात घातिनी तुम्हे खा रही,
इससे मुक्त होना ही स्वर्ग का द्वार है॥6॥
नशा तो शत्रु है मनुष्य मात्र का,
इससे लाखों परिवार बरबाद हो गए,
इस घातिनी निशा से मै जगा रहा हूं,
इस जहरीली नागिन से मैं बचा रहा हूं।
आओ शंख फूंक दें सभी मिलकर,
नशामुक्ति सुख शान्ति का द्वार है॥7॥