ये घाव मेरे अपनों के दिए है
दुश्मन की तो बात करू क्या
अरमानो की किश्ती लेकर
सागर मंथन को निकला था
मुझको किनारों ने ही डुबोया
मझधारो की बात करू क्या
तरूणाई का रुधिर पिलाकर
मेने जो उपवन सींचा था
भर वसंत में उजाड़ गया वो
पतझर की तो बात करू क्या
रूठ गया है जैसे स्पंदन
चेतन अवचेतन और चिंतन
मुक्ति मुझे अभिशाप बनी है
बंधन की तो बात करू क्या
जी जी कर मरता रहता हु
मर मर कर जीता रहता हु
परिभाषाये भूल गया हु
क्या है मरण अमरता है क्या