महंत गोपाल दास जी सरल स्वाभाव के है ,वे मेरे भाई है तथा संप्रदाय के साधू है । रामस्नेही संप्रदाय के रतलाम रामद्वारा के महंत है सत्संग के दौरान एक सत्संगी ने पूछ लिया 'महाराज जी साधू और संत में क्या अंतर है '। महाराजजी एक क्षण रुक कर बोले । हाँ ' अंतर है और बहुत गहरा है , यू तो बोल चल की भाषा में साधू और संत में कोई विशेष अंतर नहीं है किन्तु सैधांतिक स्तर पर दोनों में बहुत अंतर है । साधू भगवन का स्मरण करते है
संत वह जिसका भगवन स्मरण करते है .
उपरितौर पर तो अंतर नंही है किन्तु अंतर बड़ा गहरा है .
rashtrvadi vichardhara ko aage bdhane ke liye ek blog
Monday, August 9, 2010
Friday, August 6, 2010
शिव बनू पीलूँ हलाहल पक्ष की यदि जीत देखूं
काल के विकराल मुख को चूम लूं यदि प्रीत देखूं
काल के विकराल मुख को चूम लूं यदि प्रीत देखूं
Monday, July 12, 2010
कडुआ सच
ये घाव मेरे अपनों के दिए है
दुश्मन की तो बात करू क्या
अरमानो की किश्ती लेकर
सागर मंथन को निकला था
मुझको किनारों ने ही डुबोया
मझधारो की बात करू क्या
तरूणाई का रुधिर पिलाकर
मेने जो उपवन सींचा था
भर वसंत में उजाड़ गया वो
पतझर की तो बात करू क्या
रूठ गया है जैसे स्पंदन
चेतन अवचेतन और चिंतन
मुक्ति मुझे अभिशाप बनी है
बंधन की तो बात करू क्या
जी जी कर मरता रहता हु
मर मर कर जीता रहता हु
परिभाषाये भूल गया हु
क्या है मरण अमरता है क्या
Sunday, July 11, 2010
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