कौन कहता है कि
मै आया अकेला
कि मै हूं अकेला
कि जाउंगा अकेला।
नहीं
मै नहीं आया अकेला
दिया था जन्म जिसने
उसी को बान्ध लाया
साथ अपने।
मै चलता हूं
धरा गगन साथ चलते है
चांद तारे और सूरज
साथ चलते है
पवन मुझको
झूले में झुलाने लगता
और सन्नाटा
फुसफुसाकर कान में कहता
चुप हूं तो क्या
मत करो चिन्ता
चल रहा हूं
तुम्हारे साथ हूं मै।
मेरे गीत की लयताल में
होता मुखर उपवन
कोकिला और मोर
नाचने लगते
मुझको घेर चारो ओर।
मै नहीं एकाकी
मे एक
अनेक में समाया हूं
अनेक मुझमें समाये हैं।
और
अभी तक भूला नहीं हूं
याद है जिन्दगी के वे क्षण,
जब मेरे मीत,मेरी प्रीति ने
ली थी अंतिम विदा
झूल बाहों में मेरी
मुझसे कहा था।
यह मत समझना
जा रही हूं अकेले
ले जा रही हूं
स्मृतियां जन्मभर की
साथ अपने।
और छोडे जा रही हूं
नन्हे मुन्ने,
ये मेरे अपने
जीवन के सपने
ताकि तुम रह जाओ न अकेले
इन्हे सहेज कर रखना।
उसी क्षण से मैं
जी रहा हूं
साथ इनके।
इनमें से कोई मस्तिष्क है मेरा
तो कोई चाल कदमों की
तो कोई मेरे गीत की सरगम,
तो कोई शक्ति अन्तर की।
कोई जिजीविषा मेरी,
तो कोई वाक शक्ति मेरी
तो कोई मृदु मुस्कान मेरी
तो कोई दूरदृष्टि मेरी
तो कोई मेरा गहन चिन्तन
तो कोई अन्तरव्यथा मेरी
कोई कर्म कलश अनुपम
तो कोई साहस
मृत्यु से भी जूझने का
ये सब मेरे अपने
जीवन के सपने
मेरे मानस के राजहंस।
जब कुलबुलाने लगते
नीरभ्र नीलाकाश में मण्डराते
अपने स्निग्ध
वायवी डैनों की छाया में
मुझे सुलाते
मै स्वप्ों के संसार में खो जाता।
इन्ही के सहारे
मृत्यु से भी दो दो हाथ कर आया
सुरसा के मुख में जाकर
लौट आया।
कौन कहता है मैं अकेला हूं
नहीं
मैं नहीं अकेला
न ही आया अकेला
न हूं अकेला
दिया था जन्म जिसने
उसी को
बान्ध लाया साथ अपने
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