मंद मंद फुहार,
सुहावनी श्रावणी बौछार,
बरखा की फुहार ।
लो उतर आई गगन से,
सुरमई बौछार,
मेघ का देने जगत को,
यह सजल उपहार।
बरखा.......।1।
व्योम धरती और बादल,
हुए एकाकार
हो गए ओझल जगत के
चल रहे व्यापार।
बरखा.......।2।
नंग धडंग बाल शिशु,
सब दौडते चहुं ओर,
गली कूचों और सड़कों
पर मचा है शोर।
बरखा.........।3।
युवतियां बैठी झरोखे,
कर रही मनुहार,
मुट्ठियों में बांधती है,
रेशमी जलधार।
बरखा.........। 4।
गंध सौंधी मनचली,
गई फैल चारो ओर,
नृत्य छमछम और रिमझिम,
गीत की झकझोर।
बरखा..........। 5।
हाथ अक्षय जल कलश ले
दिव्य बोला एक,
मंत्र पढ पढ कर धरा का
कर रही अभिषेक।
बरखा........। 6।
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