Tuesday, April 26, 2011

क्षितिज के पार

चलो प्रिये उस पार चलें,

चलो क्षितिज के पार चलें,

तुम और मैं,

मै और तुम,

हम तुम दोनो,दोनो हम,

हम तुम दोनो,दोनो हम।

धरा पवन धन नील गगन,

चांद सूरज और गिरी कानन,

सागर अंगडाई लेता हो,

जगती का उजला आंगन,

वन्य जीव और जड चेतन,

वे हममे हो उनमें हम,

हम तुम दोनो,दोनो हम।1।

मै होऊ और तुम हो,

पास हमारे कोई न हो,

नीरवता हो मलियानिल हो,

प्रेम पिपासित हम दोनो,

तार बीन के झंकृत कर दूं,

तुम बन जाओ स्वर सरगम।

हम तुम दोनो,दोनो हम।2।

शर चांदनी छिटकी हो,

कल कल सरिता बहती हो,

नाच रहा हो बेसुध उपवन,

कोकिल कुहू कुहू करती हो,

चंदा आकर झूला बांधे,

झूला झूले दोनो हम।
हम तुम दोनो,दोनो हम ।3।

व्यक्त करें युग युग की स्मृतियां,

नयनों की भाषा में हम,

द्वंद्व मिटे और हो अभेद,

फिर एक रुप हो जाए हम,

अद्वितीय संसार हो अपना,

जीवन अपना हो अनुपम।

हम तुम दोनो,दोनो हम। 4।

सागर की मदमाती लहरों,

मै हहराता हो यौवन,

उपवन की कलियां फूलों में,

हंसता खिलता बचपन,

सौरभ सुसुभा का आलिंगन,

ताल मृदंगम का संगम।

हम तुम दोनो,दोनो हम।5।

ऊ षा आए दे दे थपकी,

हमे जगाए जागे हम,

संध्या के संग आंख मिचौनी

दोनो मिलकर खेले हम,

फिर रजनी की गोदी में साये,

सपनों में खो जाए हम।

हम तुम दोनो,दोनो हम। 6।

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