यह जिन्दगी
रह गई अतृप्त कभी
तृप्त हो गई
जिन्दगी
क्षणिक रेख संतोष की खिंच गई कभी
तो देखते ही देखते लुप्त हो गई। जिन्दगी......
यह जिन्दगी घोर तिमिर है
जिन्दगी प्रकाश पुंज भी
यह तो ब्रम्ह सत्य है
मिथ्या है सर्प राुवत सी
यह समस्त अस्तित्व विद्यमान है
या कि पानी का बुदबुदा
ये क्या है - मायाजाल
कौन खेल रहा-हम से यह इन्द्रजाल
जिन्दगी......
ज्ञान का अताह समन्दर
किन्तु जिज्ञासा भरी गागर
यह जिन्दगी योग है,भोग भी
राग है वैराग्य भी
कामना है त्याग भी
हास, परिहास,मौन,मुखर व्यंग्य भी
चपल चंचला है शान्त मौन भी
यह जिन्दगी
प्रलय है प्रशान्त भी
अशान्त है शान्त भी
यह कैकेयी के कोप भवन सी
देवराज इन्द्र की इन्द्रसभा भी
उर्वशी,मेनका नृत्य गीत सी
वीणा की झंकार,घुंघरु मृदंग भी
जिन्दगी है एक अतिरिक्त काव्य सी
प्राक्कथन,उपसंहार हीन भी
एक मधुर द्वंद्व से बंधी
साधना में सधी
आधार हीन शिखर हीन भी
जिन्दगी जय न पराजय है किसी की
न गीत,कथन,गद्य काव्य भी
यह रुप या कुरुप कुछ भी नहीं
यह अरुप है सभी रंगों में रंगी
कौन किसमें समाया है
कह नहीं सकता
तत्वज्ञान वेद का
सृष्टि में समाया है या
समष्टि,सृष्टि,परमेष्ठि वेद में
यह रसविहीन जन्दगी स्वादहीन है तो
नवरसों के स्वाद में सजी है जिन्दगी
समझो तो समझने के लिए सरल जिन्दगी
किन्तु है बडी दुरुह कठिन यह जिन्दगी
जटिल है जिन्दगी।
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