Tuesday, April 19, 2011

चरैवेति चरैवेति

चरैवेति चरैवेति

चरैवेति चरैवेति

चले चलो चले चलो।

यही एक लक्ष्य है

एक लक्ष्य है यही

बढे चलो चले चलो

चरैवेति चरैवेति-चरैवेति चरैवेति॥

यह रास्ता अखण्ड है

यह यात्रा अनन्त है

इसका न आदि अन्त है

पडाव पंथ में है नहीं

मंजिल भी यहां कोई नहीं

यहां तो बस मार्ग पर

चलते ही रहना है

चरैवेति चरैवेति-चरैवेति चरैवेति॥

जब से मैं हूं चला

आज तक हूं चल रहा

अमिय से जिया नहीं

गरल से मरा नहीं

पीर में वे पीर में

धीर में अधीर में

बीच में रुका नहीं

रुका नहीं थका नहीं

मै कभी झुका नहीं

मै कभी बिका नहीं

शांति में अशांति में मै कभी डिगा नहीं

ताप में संताप में एक राह चल रहा

चरैवेति चरैवेति-चरैवेति चरैवेति॥

रंज हार का नहीं

जीत की खुशी नहीं

प्रलय में प्रशान्ति में

दृष्टि एक सी रही

संकटों को ठेल कर

ठौकरों से उडा

घात प्रत्याघात कर

पंथ पर चला रहा

जानता हूं मर्त्य है देह,मरुंगा सही

किन्तु यह भी जानता हूं

(जन्म-मृत्यु) जन्म और मृत्यु गीत एक साथ गा रहा

मै अजर मै अमर

चरैवेति चरैवेति-चरैवेति चरैवेति

विनय क्या क्रोध क्या

प्रेम घृणा प्रीत क्या

शीत क्या ताप क्या

शिशिर क्या वसन्त क्या

सुकाल में अकला में

राग में विराग में

द्वंद्व में निर्द्वंद्व में

संग में साथ में

या कि अकेला चला

धरा से आसमान तक

शून्य शिखर नाप कर

चल रहा चल रहा

चरैवेति चरैवेति-चरैवेति चरैवेति॥

नीति क्या अनीति क्या

मैं कभी बंधा नहीं

भीति क्या अभीति क्या

मै भ्रमित हुआ नहीं

मोहपाश मुक्त मैं

यथायोग युक्त में

वेदमंत्र सूक्त के

दिव्य ज्ञान आत्मज्ञान

तत्व अनुरक्त मै

पंथ पर चल रहा

चरैवेति चरैवेति-चरैवेति चरैवेति॥

कर रहा आव्हान तुम्हे

आओ मेरे साथ चलो

या कि अकेले चलो

आगे चलो पीछे चलो किन्तु बस चले चलो

यही एक लक्ष्य है

चरैवेति चरैवेति-चरैवेति चरैवेति॥

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