मां तेरी पावन पूजा में
हम केवल इतना कर पाए।
युग युग से चरणों पर तेरे,
चढते आए पुष्प घनेरे,
हमने उनसे सीखा केवल,
अपना पुष्प चढा पाए॥
चित्तौड दुर्ग के वे कण कण,
जय बोल रहे तेरी क्षण क्षण,
हम भी अपने टूटे स्वर को,
उनके साथ मिला पाए॥
कुछ कली चढी कुछ पुष्प चढे,
कुछ समय से पहले फिसल पडे,
हमको दो वरदान यही मां,
विकसित होकर चढ जाए॥
जगती के बंधन आकर्षण,
यदि स्वयं काल से भी हो रण,
मां तेरे पूजा पथ पर हम,
लडते भिडते चढते जाए॥
यह अंतिम आकांक्षा सब की
जब पावन पूजा हो तेरी,
तब तनिक न पड असमंजस में
यह जीवन पुष्प चढा जाए॥
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