Thursday, June 30, 2011

नशामुक्ति

चार रात की नशे की जिन्दगी

फिर अन्धकार ही अन्धकार है।

भंग की तरंग नहीं है जिन्दगी,

गांजा,चरस,धूम्रपान नहीं जिन्दगी,

शराब तो खराब और भी,

नष्ट कर देती समग्र जिन्दगी,

निराशा हताशा का

नशाखोरी नहीं उपचार है॥1॥

तुम सिंहनी के जाये हो,

पुत्र जवां मर्द बाप के,

जाना कहां था तुम्हे और

ये तुम किधर चल पडे।

अपनी जिन्दगी यह है ना पलायन,

जिन्दगी तो कर्म का द्वार है॥2॥

जिन्दगी कायरों की होती नहीं,

यह जिन्दगी तो कभी रोती नहीं,

जिन्दगी तो कभी हारती नहीं,

भयभीत जिन्दगी कभी होती नहीं।

मुश्किलों को रौंदती,बाधाएं चीरती,

यह जिन्दगी विजय का द्वार है॥3॥

क्षणिक सुख की कामना तो

अपनी नहीं है जिन्दगी,

जिन्दगी मातृऋ ण को उतारती,

जिन्दगी मातृभूमि ऋ ण उतारती,

यह जिन्दगी अकेले तुम्हारी नहीं है,

इस पर न जाने किस किस का अधिकार है॥4॥

कलाई पर बन्धे रेशमी धागे की जिन्दगी,

आंचल में छुपा दूध वात्सल्य जिन्दगी,

गोद में पिता की बैठा दुलार जिन्दगी,

नयनों में छलकता प्यार जिन्दगी,

दादी की कहानियों को याद करो,

लाडभरी थपकियां जो सुनाई देती बारबार है॥5॥

तुम्हे मालूम नहीं तुम्हे क्या हो गया,

तुम्हारा स्वाभिमान रे कहां खो गया,

निजत्व,पुरुषत्व इमान ज्ञान ध्यान का,

वचन का जान पहिचान का,

यह नशीली रात घातिनी तुम्हे खा रही,

इससे मुक्त होना ही स्वर्ग का द्वार है॥6॥

नशा तो शत्रु है मनुष्य मात्र का,

इससे लाखों परिवार बरबाद हो गए,

इस घातिनी निशा से मै जगा रहा हूं,

इस जहरीली नागिन से मैं बचा रहा हूं।

आओ शंख फूंक दें सभी मिलकर,

नशामुक्ति सुख शान्ति का द्वार है॥7॥

Tuesday, May 17, 2011

जिन्दगी

यह जिन्दगी

रह गई अतृप्त कभी

तृप्त हो गई

जिन्दगी

क्षणिक रेख संतोष की खिंच गई कभी

तो देखते ही देखते लुप्त हो गई। जिन्दगी......

यह जिन्दगी घोर तिमिर है

जिन्दगी प्रकाश पुंज भी

यह तो ब्रम्ह सत्य है

मिथ्या है सर्प राुवत सी

यह समस्त अस्तित्व विद्यमान है

या कि पानी का बुदबुदा

ये क्या है - मायाजाल

कौन खेल रहा-हम से यह इन्द्रजाल

जिन्दगी......

ज्ञान का अताह समन्दर

किन्तु जिज्ञासा भरी गागर

यह जिन्दगी योग है,भोग भी

राग है वैराग्य भी

कामना है त्याग भी

हास, परिहास,मौन,मुखर व्यंग्य भी

चपल चंचला है शान्त मौन भी

यह जिन्दगी

प्रलय है प्रशान्त भी

अशान्त है शान्त भी

यह कैकेयी के कोप भवन सी

देवराज इन्द्र की इन्द्रसभा भी

उर्वशी,मेनका नृत्य गीत सी

वीणा की झंकार,घुंघरु मृदंग भी

जिन्दगी है एक अतिरिक्त काव्य सी

प्राक्कथन,उपसंहार हीन भी

एक मधुर द्वंद्व से बंधी

साधना में सधी

आधार हीन शिखर हीन भी

जिन्दगी जय न पराजय है किसी की

न गीत,कथन,गद्य काव्य भी

यह रुप या कुरुप कुछ भी नहीं

यह अरुप है सभी रंगों में रंगी

कौन किसमें समाया है

कह नहीं सकता

तत्वज्ञान वेद का

सृष्टि में समाया है या

समष्टि,सृष्टि,परमेष्ठि वेद में

यह रसविहीन जन्दगी स्वादहीन है तो

नवरसों के स्वाद में सजी है जिन्दगी

समझो तो समझने के लिए सरल जिन्दगी

किन्तु है बडी दुरुह कठिन यह जिन्दगी

जटिल है जिन्दगी।

Monday, May 16, 2011

दीपशिखा

दीपशिखा रातभर

अश्रु बहाती रही,

कोई द्वंद्व् है,

कि कोई वेदना सता रही।

आर पार तिमिर के

देख रही नयन फार

संकेत कर रही

हाथ उठा बार बार

जनम जनम का जो मीत

उसको बुलाती रही॥

अपनी ही आग में,

अपने ही प्रियतम को,

फूंकना पडेगा मुझे

अपने ही प्यार को

यही सोच सोचकर,

तिलमिलाती रही॥

समस्त सृष्टि सो गई,

अपने सुखद स्वप् में,

जाग रही दीपशिखा,

किन्तु अपनी अगन में

मानो विरहागि् को

स्वयं ही बुझाती रही॥

तभी शलभ आ गया,

वातायन लांघ कर

आलिंगन देने लगा

फूंकने लगा पंख एक एक कर

फिर प्रियतम को शव लिए गोद में

रातभर दीपशिखा रोती रही॥

Tuesday, May 10, 2011

लादेन की मौत से पाक का दोगलापन उजागर

स्व.भाटी स्मृति व्याख्यानमाला में डा.वैदिक ने कहा

रतलाम। अन्तर्राष्ट्रिय मामलों के जानकार डा.वेदप्रताप वैदिक ने यहां कहा कि ओसामा बिन लादेन की मौत ने पाकिस्तान के दोगलेपन को उजागर कर दिया है। वर्तमान स्थितियों में भारत को किसी सैनिक अभियान की बजाय कूटनीतिक प्रयासों का उपयोग करना चाहिए। अमेरिका से पाकिस्तान पर दबाव बनवा कर वांछित आतंकियों को भारत लाने के प्रयास करना चाहिए। पाकिस्तान पूरी तरह अमेरिका की दया पर जीवित है वह अमेरिका के दबाव को नकार नहीं सकता लेकिन यदि भारत ने कोई सैनिक अभियान करने के प्रयास किए तो स्थितियां नाजुक हो सकती है और कोई भी सिरफिरा पाकिस्तानी सेना अधिकारी परमाणु युध्द छेड सकता है।

डै.वैदिक सोमवार रात को स्थानीय पटेल सभागृह में आयोजित स्व.भंवरलाल भाटी स्मृति व्याख्यानमाला में बोल रहे थे। शहर के आमंत्रित बुध्दिजीवियों को सम्बोधित करते हुए उन्होने कहा कि लादेन की मौत के बाद इस विषय पर सार्वजनिक बहस का पूरे देश में संभवत: यह पहला कार्यक्रम है। लादेन के बाद उपजी नवीन अन्तर्राष्ट्रिय परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए श्री वैदिक ने कहा कि लादेन के अन्त ने कई नई परिस्थितियों का जन्म दिया है।

अपने विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान के प्रारंभ में लादेन की पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए डा. वैदिक ने कहा कि कुछ लोग समझते है कि ओसामा बिन लादेन जैसा दुर्दान्त और सद्साहसी दुनिया में दूसरा कोई नहीं है। उसकी तुलना हजार वर्ष पहले के अरबों से की जाती है। ओसामा का वास्तविक नाम उसामा है,जो अरबी भाषा का शब्द है। यमन के ईंटें ढोने वाले मजदूर के घर में जन्मे ओसामा ने अफगानिस्तान और पख्तूनिस्तान को अपनी कर्मस्थली बनाया जहां पख्तूनों की बहुलता है। यह जाति मजहब तो इस्लाम को मानती है लेकिन समस्त आर्य परंपरा का पालन करती है। इस क्षेत्र के पख्तूनों को जेहाद के नाम पर भडकाकर अपने नापाक ईरादों की पूर्ति करने वाले ओसामा का जेहाद से कोई लेना देना नहीं था। उसने तो सिर्फ जेहाद शब्द के उपयोग के लिए इस्लाम का दुरुपयोग किया।

पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति को रेखांकित करते हुए डा.वैदिक ने कहा कि जिस देश में दाउद,हाफिज सईद,मस्तगुल जैसे आतंकवादी खुले घुम रहे हो,जो देश अपनी जमीन चीन को दे रहा हो। वह देश यदि सम्प्रभुता की बात करे तो यह केवल ढोंग है। लेकिन ओसामा की मौत ने पाकिस्तान के इस ढोंग को उजागर कर दिया है। पाकिस्तान में सम्प्रभु राष्ट्र का एक भी लक्षण मौजूद नहीं है।

भारतीय सेना की प्रशंसा और नेताओं की कायरता की निन्दा करते हुए डा.वैदिक ने कहा कि भारतीय सेना तो अमेरिकी सेना से भी बेहतर कार्रवाई करने में सक्षम है लेकिन नेताओं में निर्णय लेने की क्षमता और साहस नहीं है। डा.वैदिक ने लादेन के अंत के बाद बन रही परिस्थितियों के विश्लेषण के आधार पर आतंकवाद की समस्या का समाधान सुझाते हुए कहा कि अमेरिका के खर्च पर भारत अफगानिस्तान में 5 लाख सैनिकों की फौज तैयार करें एवं उसे प्रशिक्षित करे। इस प्रकार निर्मित फौज अफगान पाक क्षेत्र से आतंकवादियों को समाप्त कर देगी। जिससे अमेरिका और भारत दोनो का ही इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने का लक्ष्य पूरा हो जाएगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए चिंतक चैतन्य कुमार काश्यप ने कहा कि देश के प्रति निष्ठावान व्यक्तित्व की स्मृति में आयोजित इस व्याख्यानमाला का शुभारंभ डा.वेदप्रताप वैदिक जैसे विद्वान के व्याख्यान से हो रहा है। इससे बेहतर श्रध्दांजलि स्व.भंवरलाल भाटी को नहीं हो सकती। श्री काश्यप ने विश्वास के संकट को देश के लिए सबसे बडी समस्या निरुपित करते हुए कहा कि नेतृत्व ही विश्वास विहीन हो चुका है,निष्ठाएं व्यक्तिगत होती जा रही है,राष्ट्र के प्रति घटती जा रही है। ऐसे में स्व.भाटी जी और भी प्रासंगिक हो जाते है,जिन्होने राष्ट्रनिष्ठ युवाओं को तैयार किया।

स्थानीय सरदार पटेल सभागृह में आयोजित स्व.भंवरलाल भाटी स्मृति व्याख्यानमाला का शुभारंभ अतिथियों ने भारतमाता और मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीपप्रज्वलन कर किया। अतिथि परिचय एवं विषय प्रवर्तन डा.प्रदीपसिंह राव ने किया। डा.मुरलीधर चांदनीवाला ने स्व.भाटी जी के जीवन पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर डा.प्रदीपसिंह राव द्वारा लिखित पुस्तक विचार विथीका का विमोचन अतिथियों ने किया। अतिथियों का स्वागत आयोजन समिति अध्यक्ष डा.डीएन पचौरी,सहित तुषार कोठारी,डा.मुरलीधर चांदनीवाला,कृष्ण गोपाल अग्रवाल,मयूर व्यास,मांगीलाल यादव,डा.प्रदीपसिंह राव ने किया। डा.डीएन पचौरी ने डा.वैदिक को स्मृतिचिन्ह प्रदान किया। अंत में आभार समिति सचिव तुषार कोठारी ने व्यक्त किया। कार्यक्रम का सफल संचालन डा.रत्नदीप निगम ने किया।

Friday, May 6, 2011

स्व.भाटी स्मृति व्याख्यानमाला 9 मई को,डा. वैदिक सम्बोधित करेंगे

रतलाम, ैल। स्व.भंवरलाल भाटी की स्मृति को चिरस्थाई रखने के लिए गठित स्व.भाटी स्मृति व्याख्यानमाला आयोजन समिति द्वारा आगामी 9 मई को देश के ख्यातनाम विद्वान डा.वेदप्रताप वैदिक को व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया है। डा.वैदिक लादेन के अंत के बाद बन रही नई अन्तर्राष्ट्रिय परिस्थितियों पर अपना व्याख्यान देंगे।

स्व.भाटी स्मृति व्याख्यानमाला आयोजन समिति की महत्वपूर्ण बैठक के बाद संयोजक डा.रत्नदीप निगम ने उक्त जानकारी दी। श्री निगम ने बताया कि व्याख्यानमाला के प्रथम आयोजन में देश के लब्धप्रतिष्ठित विद्वान और अन्तर्राष्ट्रिय राजनीति के विशेषज्ञ डा.वेदप्रताप वैदिक को आमंत्रित किया गया है। दुनिया के सर्वाधिक दुर्दान्त आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के अंत के बाद बन रही नई अन्तर्राष्ट्रिय परिस्थितियों को लेकर आज हर ओर चर्चाएं हो रही है। देश और विश्व का पूरा बुध्दिजीवी वर्ग इस मामले पर अपने अपने स्तर पर आकलन कर रहा है कि लादेन के बाद आतंकवाद पर क्या असर पडेगा। क्या आतंकवाद कमजोर पडेगा या इसमें तेजी आएगी। पाकिस्तान का दोगलापन जाहिर होने के बाद भी क्या अमेरिका पाकिस्तान को पहले की तरह मदद देता रहेगा या इस घटना के बाद पाकिस्तान और चीन का नया गठजोड सामने आएगा। विश्व की इन नई परिस्थितियों का भारत पर क्या असर होगा। ओसामा के अन्त के बाद क्या भारत पाकिस्तान में रह रहे अपने अपराधियों को वापस लाने के लिए कोई ठोस कार्ययोजना बनाएगा। इस तरह के असंख्य महत्वपूर्ण प्रश्नों के समाधान के लिए यह व्याख्यानमाला एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। डा.निगम ने बताया कि डा.वैदिक अपने राजनैतिक और कूटनीतिक विश्लेषण के लिए पूरे विश्व भर में जाने जाते है। देश के लगभग सभी प्रमुख समाचार पत्रों में वे नियमित रुप से अन्तर्राष्ट्रिय मुद्दों पर लेखन करते रहे है। उत्कृष्ट कोटि के लेखक होने के साथ ही वे अत्यन्त श्रेष्ठ वक्ता भी है।

डा.निगम ने बताया कि बैठक में समिति अध्यक्ष डा.डीएन पचौरी,उपाध्यश्र डा.मुरलीधर चांदनीवाला,सम्पर्क प्रमुख डा.प्रदीपसिंह राव,चित्तरंजन लुणावत व सचिव तुषार कोठारी उपस्थित थे। बैठक में व्याख्यानमाला के सफल शुभारंभ की तैयारियों पर विस्तार से चर्चा की गई। डा.निगम ने बताया कि उक्त आयोजन 9 मई सोमवार को शाम सात बजे न्यूरोड स्थित गुजराती विद्यालय के सरदार पटेल सभागृह में संपन्न होगा। आयोजन समिति ने नगर की प्रबुध्द जनता से आग्रह किया है कि वे अधिकाधिक संख्या में इस आयोजन में भाग लेकर इन ज्वलंत प्रश्नों का समाधान खोजने में सहायक बनें।

Monday, May 2, 2011

अकेला

कौन कहता है कि

मै आया अकेला

कि मै हूं अकेला

कि जाउंगा अकेला।

नहीं

मै नहीं आया अकेला

दिया था जन्म जिसने

उसी को बान्ध लाया

साथ अपने।

मै चलता हूं

धरा गगन साथ चलते है

चांद तारे और सूरज

साथ चलते है

पवन मुझको

झूले में झुलाने लगता

और सन्नाटा

फुसफुसाकर कान में कहता

चुप हूं तो क्या

मत करो चिन्ता

चल रहा हूं

तुम्हारे साथ हूं मै।

मेरे गीत की लयताल में

होता मुखर उपवन

कोकिला और मोर

नाचने लगते

मुझको घेर चारो ओर।

मै नहीं एकाकी

मे एक

अनेक में समाया हूं

अनेक मुझमें समाये हैं।

और

अभी तक भूला नहीं हूं

याद है जिन्दगी के वे क्षण,

जब मेरे मीत,मेरी प्रीति ने

ली थी अंतिम विदा

झूल बाहों में मेरी

मुझसे कहा था।

यह मत समझना

जा रही हूं अकेले

ले जा रही हूं

स्मृतियां जन्मभर की

साथ अपने।

और छोडे जा रही हूं

नन्हे मुन्ने,

ये मेरे अपने

जीवन के सपने

ताकि तुम रह जाओ न अकेले

इन्हे सहेज कर रखना।

उसी क्षण से मैं

जी रहा हूं

साथ इनके।

इनमें से कोई मस्तिष्क है मेरा

तो कोई चाल कदमों की

तो कोई मेरे गीत की सरगम,

तो कोई शक्ति अन्तर की।

कोई जिजीविषा मेरी,

तो कोई वाक शक्ति मेरी

तो कोई मृदु मुस्कान मेरी

तो कोई दूरदृष्टि मेरी

तो कोई मेरा गहन चिन्तन

तो कोई अन्तरव्यथा मेरी

कोई कर्म कलश अनुपम

तो कोई साहस

मृत्यु से भी जूझने का

ये सब मेरे अपने

जीवन के सपने

मेरे मानस के राजहंस।

जब कुलबुलाने लगते

नीरभ्र नीलाकाश में मण्डराते

अपने स्निग्ध

वायवी डैनों की छाया में

मुझे सुलाते

मै स्वप्ों के संसार में खो जाता।

इन्ही के सहारे

मृत्यु से भी दो दो हाथ कर आया

सुरसा के मुख में जाकर

लौट आया।

कौन कहता है मैं अकेला हूं

नहीं

मैं नहीं अकेला

न ही आया अकेला

न हूं अकेला

दिया था जन्म जिसने

उसी को

बान्ध लाया साथ अपने

Friday, April 29, 2011

बरखा की फुहार

मंद मंद फुहार,

सुहावनी श्रावणी बौछार,

बरखा की फुहार ।

लो उतर आई गगन से,

सुरमई बौछार,

मेघ का देने जगत को,

यह सजल उपहार।

बरखा.......।1।

व्योम धरती और बादल,

हुए एकाकार

हो गए ओझल जगत के

चल रहे व्यापार।

बरखा.......।2।

नंग धडंग बाल शिशु,

सब दौडते चहुं ओर,

गली कूचों और सड़कों

पर मचा है शोर।

बरखा.........।3।

युवतियां बैठी झरोखे,

कर रही मनुहार,

मुट्ठियों में बांधती है,

रेशमी जलधार।

बरखा.........। 4।

गंध सौंधी मनचली,

गई फैल चारो ओर,

नृत्य छमछम और रिमझिम,

गीत की झकझोर।

बरखा..........। 5।

हाथ अक्षय जल कलश ले

दिव्य बोला एक,

मंत्र पढ पढ कर धरा का

कर रही अभिषेक।

बरखा........। 6।

Tuesday, April 26, 2011

क्षितिज के पार

चलो प्रिये उस पार चलें,

चलो क्षितिज के पार चलें,

तुम और मैं,

मै और तुम,

हम तुम दोनो,दोनो हम,

हम तुम दोनो,दोनो हम।

धरा पवन धन नील गगन,

चांद सूरज और गिरी कानन,

सागर अंगडाई लेता हो,

जगती का उजला आंगन,

वन्य जीव और जड चेतन,

वे हममे हो उनमें हम,

हम तुम दोनो,दोनो हम।1।

मै होऊ और तुम हो,

पास हमारे कोई न हो,

नीरवता हो मलियानिल हो,

प्रेम पिपासित हम दोनो,

तार बीन के झंकृत कर दूं,

तुम बन जाओ स्वर सरगम।

हम तुम दोनो,दोनो हम।2।

शर चांदनी छिटकी हो,

कल कल सरिता बहती हो,

नाच रहा हो बेसुध उपवन,

कोकिल कुहू कुहू करती हो,

चंदा आकर झूला बांधे,

झूला झूले दोनो हम।
हम तुम दोनो,दोनो हम ।3।

व्यक्त करें युग युग की स्मृतियां,

नयनों की भाषा में हम,

द्वंद्व मिटे और हो अभेद,

फिर एक रुप हो जाए हम,

अद्वितीय संसार हो अपना,

जीवन अपना हो अनुपम।

हम तुम दोनो,दोनो हम। 4।

सागर की मदमाती लहरों,

मै हहराता हो यौवन,

उपवन की कलियां फूलों में,

हंसता खिलता बचपन,

सौरभ सुसुभा का आलिंगन,

ताल मृदंगम का संगम।

हम तुम दोनो,दोनो हम।5।

ऊ षा आए दे दे थपकी,

हमे जगाए जागे हम,

संध्या के संग आंख मिचौनी

दोनो मिलकर खेले हम,

फिर रजनी की गोदी में साये,

सपनों में खो जाए हम।

हम तुम दोनो,दोनो हम। 6।

Sunday, April 24, 2011

श्मशान

यों तो कई बार

श्मशान गया हूं

अपने परायों को

चिता को समर्पित करने

स्वर्ग अथवा नर्क

कदाचित ही किसी ने देखा हो,

किन्तु पृथ्वी पर

एक स्थान ऐसा है अवश्य

जहां पंहुच कर मनुष्य

रह जाते केवल मनुष्य।

भौतिक जीवन की दार्शनिकता को लांघकर

वह आध्यात्मिक उंचाई छूने लगता है।

चाहे यह वैराग्य वेदान्त

कुछ देर का ही क्यो न हो

किन्तु हां

श्मशान में पंहुचकर ऐसा ही होता है।

श्मशान में न जाने छुपी

चुम्बकिय शक्ति एक

कि व्यक्ति यहां पंहुच कर

अपने आप

निर्वसन हो जाता है

अन्दर ही अन्दर,अपने

जीवन में झांकने के लिए

कई बार जाने अनजाने,

मै श्मशान से मौनालाप करता रहा,

किन्तु आज एक कोने में बैठा,

श्मशान से एक प्रश्न पुछ बैठा,

मित्र यो तो हम मिले है कई बार,

किन्तु मौन तोडा है मैने प्रथम बार।

मित्र यह एक ही क्रियाजो तुम,कर रहे

बीत गए कितने काल,

पहले स्वयं जलते हो

फिर जलाते हो,

ऊ ब नहीं जाते हो?

मरघट कुछ देर रहा मौन,

फिर हड्डियों का खडखडाता ढेर,

दूर कर चेहरे से,

मुंह खोला

और बोला,

सच कहते हो

दिन में धधकता हूं बाहर,

शवों को जलाता हूं

फूंकता रहता हूं

रात को

अन्दर ही अन्दर

धधकता रहता हूं।

मित्र उठा था यही प्रश्न

मेरे मन में भी एक बार

किससे पूछता इसका हल

नहीं था कोई पास मेरे।

मै स्वयं ही खो गया,

डूब गया गहरे में,

मिल गया हल,

हो गया समाधान।

सुनोगे?

मैने कहा हां

और श्मशान ने थोडा निकट खिसक कर,

आंख बन्द कर

और दाग दिए कुछ प्रश्न-

एक एक कर।

बोला,

हहराती भीषण लहरों के बोझ से दबा

यह शान्त समन्दर कभी ऊ बा है?

मै कुछ बोलता उससे पहले ही

वह आगे बढ गया।

यह हिमगिरी शिखर

अहर्निश सूर्य किरणों को पी पीकर

पिघलाता बर्फ कभी ऊ बा है?

दावानल से बारबार

राख होता वन

कभी ऊ बा है?

उगता है हरा भरा होता है,फिर सूखता है,जलता है,

क्या कभी ऊ बा है?

कभी बाढ में उफनाती

कभी कृषगात होती,

कूल कगारों को तोडती,

फिर कभी सूख कर रेत में सो जाती,

नदी क्या कभी ऊ बी है।

नहीं कोई नहीं ऊ बता।

श्मशान थोडा और निकट आकर बोला

रहस्य की एक बात सुनोगे?

शायद तुम्हे याद हो न हो-मुझे याद है

तुम कितनी ही बार यहां आए हो

मुझमें समाये हो।

क्या तुम कभी इस आवागमन से ऊ बे हो?

यह सृष्टि का सत्य है,

यही सृजन का धर्म है

यही सनातन क्रम है

इसे चलने दो

इसका विचार मत करो

तुम पुन: मेरे पास आओगे

मुझमें समाओगे

कहीं ओर चले जाओगे-उबना कैसा

सृजन की इिस स्वाभाविकता को

सहजता से जियो

ऊ बना कैसा?

Friday, April 22, 2011

अहं-अहंकार

-अहं-

-मै-

हां-अहं-अपने होने का बोध

अपने होने का संकल्प।

की मैने घोषणा

और हो गया

एक से अनेक

-एकोहं बहुस्यामि-

यह जो अस्तित्व है विद्यमान

मेरे होने का प्रमाण

ये सब मुझसे है

मै इनसे नहीं

ये सब मेरे कारण है

मै इनके कारण नहीं।

मै सागर की उत्ताल तंरगों में

हहराता हूं

बहता हूं

उनचासो प्रभंजन में

मै ही बहता हूं।

मै ही अन्धकार बन लील लेता हूं जगत

और उद्भासित करता

पुन: उसे

अपनी ही किरणों के प्रकाश में।

मेरी ही शीतल चांदनी में

धरती नहाती है

तारों से मुसकाती है

मेरी ही मंद मंद

फुहार से

मलिन मुख धो लेती धरा।

मेरे अनेक रुप है

मै अभिमान हूं

स्वाभिमान हूं

घमण्ड,दर्प,अंहकार भी

ये सब मेरी शाखाएं है

इस सृजन में

इन सबका अपना स्थान

महत्व है मर्यादा है।

तुम समझ जाओगे

गहरे में डूबो

सबकी अपनी अपनी

लक्ष्मण रेखा है।

मेरी भी है

मूल रुप से

मै ही सृष्टि का कारण हूं

इसलिए विवश हूं

कहना पड रहा है

निवेदन है मेरा

दार्शनिकों।

संतो। महन्तो।

मनीषियों,महापुरुषो,

उपदेशको,विचारको

भक्तो,सत्गुरुओं,

मेरे पीछे मत पडो

मत करो मेरी चरित्र हत्या

मै संसार विनाश की जड नहीं।

मै तो सृजन का

सृष्टि का मूल हूं

मै हूं तो आप भी है

यदि समेट लिया मैने

अपने आपको

इस सृजन का

इस अस्तित्व का

क्या होगा?

कभी सोचा आपने?

अभिव्यक्ति

व्यक्ति की अभिव्यक्ति तुम,

समष्टि की सृष्टि की

शक्ति हो युक्ति हो

ज्ञान विज्ञान की

प्रगति का आधार हो तुम।

कलकल करती निर्झरिणी

विमल धार गंगा की

कान्हा की बांसुरी के

जमुनाजल प्रतिध्वनित स्वर

लयताल बध्द

संगीत की सरगम हो।

मचल जब जाती हो

सागर की उफनाती लहर बन

लहराती हो

कभी ज्वालामुखी बन

फट पडती हो

लावा उगलती हो।

क्या नहीं हो तुम

मानवीय सभ्यता की

उन्नति से अवनति तक

सृजन से विंध्वंस तक

प्रेम से घृणा

संस्कृति से विकृति तक

मूर्त भी अमूर्त भी

सगुण भी निर्गुण भी

यत्र तत्र सर्वत्र

सृजन,सिंचन,संहार हो तुम।

निर्दयी इतनी

कि जब किसी के हृदय में

शूल बन गढ जाती हो

तो कसक बन

एक नहीं सात जन्मो तक

चुभती रहती हो।

करुणामयी इतनी कि

वज्रवत कठोर मानस को

सुधा रसधार से सराबोर कर देती हो।

तुम नहीं इन्द्रजाल शब्दों का

वाणी विलास नहीं तुम

हास परिहास नहीं

तुम सृष्टि के अवतन्स मानव के

अन्तर की महाशक्ति हो।

मां सरस्वती का चरणोदक हो

शब्द ब्रम्ह के सहारे

निराकार भावों को

देती आकार तुम।

कभी तुतलाती,कभी करती अट्टहास

कभी व्यंग्य वाणों को उतार देती

मानस के अन्तर की

गहराईयों तक।

कराती कभी वीर रस पान

कभी श्रृंगार में डुबो देती तन मन प्राण

करती कभी अनावृत्त प्रकृति अंतरंग।

कभी ज्ञान विज्ञान गंभीर

तो कभी ऋ चाओं में

वेदान्त की समाधिस्थ

हो जाती साधक के समान।

कभी केशव के मुख से

मुखरित गीता का कर्मयोग

ज्ञान भक्ति तत्व ज्ञान।

कभी सूर मीरा तुलसी को जगाती तुम

बहाती भक्ति की अजस्त्र धार

कभी कबीर की निर्गुण निराकार

वाणी कल्याणी बन जाती तुम।

कभी महाकवि भूषण के छन्दो की तीक्ष्ण धार

तो कभी करुणा महादेवी की

कोमलकान्त पदावलि पंत की

तो कभी निराला की रामशक्ति पूजा बन

कभी कामायनी प्रसाद की

बिहारी के तीर तुम

वीर रस रासो चन्दबरदाई का

तो कभी हाला मधुबाला

मधुशाला बचाचन की।

क्या नहीं हो तुम

प्रताप का भाला हो

जौहर की ज्वाला हो

पिथौरा का शब्दभेदी वाण

छत्रपति शिवा की कृपाण

तेग गुरु गोविन्द की

गरजती बरसती चमकती चपला

मेघमाला में

शिखर हिमगिरी से उतरी

अष्टभुजा धारिणी

नवदुर्गा माता हो

तुम सरस्वती माता हो

बस

तुम माता हो,माता हो,माता हो

मर्यादा में बंधी

लक्ष्मणरेखा में सधी

तुम गंगा की पावनधारा हो

विष्णु चरण तरंगिणी

वेदवती

माता हो माता हो माता हो॥